About

जोधपुर में कला व संस्कृति को नया आयाम देने के लिए एक मासिक हिंदी पत्रिका की शरुआत, जो युवाओं को साथ लेकर कुछ नया रचने के प्रयास में एक छोटा कदम होगा. हम सभी दोस्तों का ये छोटा-सा प्रयास, आप सब लोगों से मिलकर ही पूरा होगा. क्योंकि कला जन का माध्यम हैं ना कि किसी व्यक्ति विशेष का कोई अंश. अधिक जानकारी के लिए हमें मेल से भी संपर्क किया जा सकता है. aanakmagazine@gmail.com

सदस्यता

सदस्यता लेने हेतु sbbj bank के निम्न खाते में राशि जमा करावे....

Acoount Name:- Animesh Joshi
Account No.:- 61007906966
ifsc code:- sbbj0010341

सदस्यता राशि:-
1 वर्ष- 150
2 वर्ष- 300
5 वर्ष- 750

राशि जमा कराने के पश्चात् एक बार हमसे सम्पर्क अवश्य करे....

Animesh Joshi:- +919649254433
Tanuj Vyas:- +917737789449

प्रत्यर्शी संख्या

Powered by Blogger.
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Blogger templates

Blogger news

Monday 22 September 2014


अनिमेष जोशी

यादो के सब्ज बाग की खुरचन हमेशा हमारे वर्तमान को परेशान करती है. हम जैसे-जैसे जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं एकाएक उन सभी पलों के बारे में सोचना शुरू कर देते है जो हमारा हिस्सा होना चाहते थे. वर्तमान के प्रति एक प्रकार की खीझ हमें न चाहते हुए भी अपने भीतर पसरे मौन से उपजे एकांत की ओर ले जाता हैं; और धीरे-धीरे हम उन सारी स्मृतियाँ को अपने समीप पाकर वक्त को उसी जगह रोकने की चेष्टा कर बैठते है, जिनकी उहमियत रफ्तार में हम पकड़ ही न पाए. बहरहाल लंच बॉक्स फि़ल्म में खाने का डिब्बा महज डिब्बा न होकर उन सारी स्मृतियों को फिर से पकड़ने का माध्यम है ईलाके लिए जो  उसे कही-न-कही अपने आज में प्राप्त नहीं हो रहा हैं. साथ-ही-साथ यह एक तरह का वार्निंग सिग्नल है हमारे लिए जिसे हम समय रहते महसूस कर पाए तो अच्छा होगा.

हम अपने को  उस बाड़ तक सीमित नहीं रखता चाहते है जो हमारे लिए ही बनी है. दिन प्रतिदिन
Saturday 13 September 2014
 पद्मा मिश्रा
 
 
सुबह सुबह ओस से भींगी हरी घास पर चलना सुमि को बहुत अच्छा लगता है ,जैसे हरी निर्मल दूब पर मोतियों की की  छुअन -और उन पर धीरे धीरे पाँव रखकर चलना --बिलकुल किसी वनदेवी की तरह -सुमि को बहुत पसंद है ,- - यह छोटी सी बगिया ही मानो उसके सपनो का संसार है -कोने में लगाई गुल दाउदी -जूही व् रजनीगंधा को पनपते -अंकुरित होते न केवल महसूस किया है बल्कि जिया भी है -ठीक अपने बच्चों की तरह उनकी देख भाल भी की है ,जूही की कलियाँ टोकरे में भर कर उन्हें बार बार सूंघना और बच्चों की तरह खुश हो जाना भी सुमि को बेहद पसंद है -पर रजनीगंधा की कलियाँ न जाने क्यों अभी तक नहीं खिल पायीं ,- - वह रजनीगंधा की दीवानी है ,और उसे खिलते हुए देखना चाहती है --उसकी वेणियां बना अपने बालों को सजाना चाहती है ,पर कलियाँ हैं --क़ि उसकी भावनाओं से बिलकुल अनजान हैं ,उधर कोने में खड़ा हवा के झोंके से झूमता इतराता हरसिंगार भी उसे बहुत प्रिय है --जिसे उसने 'विवेक'नाम दिया है -ठीक उसके पति विवेक की
 
 तरह बिंदास -जिंदादिल -उनसे जब फूलों की बरसात होती तो वह अपना आँचल फैला ठीक उसके नीचे खड़ी हो जाती -ढेर सारे फूल ही फूल बिखर जाते -उसके आस पास रजनीगंधा के पौधों को उसने गुंजन,अंजन और