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जोधपुर में कला व संस्कृति को नया आयाम देने के लिए एक मासिक हिंदी पत्रिका की शरुआत, जो युवाओं को साथ लेकर कुछ नया रचने के प्रयास में एक छोटा कदम होगा. हम सभी दोस्तों का ये छोटा-सा प्रयास, आप सब लोगों से मिलकर ही पूरा होगा. क्योंकि कला जन का माध्यम हैं ना कि किसी व्यक्ति विशेष का कोई अंश. अधिक जानकारी के लिए हमें मेल से भी संपर्क किया जा सकता है. aanakmagazine@gmail.com

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Tuesday 25 November 2014


Sunday 9 November 2014
 बलूत के पेड़ पर बैठकर गाया जा रहा एक गीत किसी उपादेय के लायक है या नहीं? एक तलाश उस बुलबुल की जारी है जो इसके द्वारा गया जा रहा गीत का सही मानदेय उसे दे सके. बुलबुल रोज़ अपने कंठ से जो अनुराग बरसा रही है कही वो उसके जीवन की भोगी हुई वेदना का सूचक तो नहीं जो अपनी करुणा से औरों को मुक्त रखना चाहता है. ऑस्कर वाइल्ड़ की कहानी ‘नाईटएंगल एंड दी रोज़’ आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उसके रचना काल से समय थी. जीवन इतना तेजी से भाग रहा है. छोटी-छोटी वस्तुओं की अहमियत लगभग खत्म होने के कगार पर आ खड़ी हुई है. हर बात के केंद्र मे केवल हमारा उपभोक्ता वादी रवैया ही हावी रहता है. इसी रवैये के चलते हमने अपनी ठहर कर ओब्सज़र करने की परख को खो दिया है. इस परख का दूर होना ही हमारे बहुत से किये जा रहे कार्यो पर ना चाहते हुए भी दिख रहा है.
 बिना किसी स्वार्थ के उस सच्चे प्रेमी की तलाश मे अपने आप को खो देना. अपनी बुद्धिमता को सिद्ध करने के लिए वह फिलोसोफी भी कमतर साबित हुई जो एक अदद लाल गुलाब भी पास में नहीं होने पर अपनी सार्थकता को किसी रूप में सिद्ध न करा पाई. लड़के के ज्ञान व कौशल को तरजीह न देते हुए लड़की की चाह उस लाल गुलाब को पाने की है जो केवल कुछ देर के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है. रोज़-रोज़ हम न जाने क्या-क्या खरीदते रहते है उस कुछ क्षण वाले मॉनिटर के लिए जो हमें वॉच करेगा. हमारा आंतरिक मन रह-रह कर उस मॉनिटर को पोषित करता रहता है.
 राजकुमार ने अपने यहाँ जलसे का आयोजन किया. लड़की लाल गुलाब के मिलने पर ही लड़के के साथ नाचना पसंद करेगी अन्यथा उसको पार्टी में अकेले ही बैठे रहना पड़ेगा. यह बात सुनकर बुलबुल बड़ी विचलित है, उसे लड़के का प्यार सच्चा लगता है लेकिन अपने आस-पास एक भी लाल गुलाब नहीं होने की स्थिति में लड़के से ज्यादा चिंता में वो नज़र आ रही है. एक दिन बाद पार्टी है इतने कम समय में वो लाल गुलाब कहा से लाए यह बात उसे अंदर तक परेशान कर रही है. पता नहीं उस  बुलबुल को उस लड़के में क्या नज़र आ गया जिसकी वजह से वो प्यारे गीत को भी व्यर्थ मान बैठी है और रह-रह कर यह बात सोच रही हैं कि गीत की उपयोगिता है भी या नहीं?
 बुलबुल, गुलाब के तीन-तीन बिरवे के पास जाकर उनसे एक अदद लाला गुलाब की मांग करना. तीनों ही बिरवे के पास लाल गुलाब तो क्या कोई भी गुलाब का अभाव होना. सबके अपने-अपने मंतव्य को सुनकर उसका चेहरा किसी अलसाई शाम में किसी गलत तान से छेड़ने के समान लगना. एक बिरवे का सुझाव उसको सकते में डालते हुए भी सोचने पर मजबूर कर रहा है. इस सुझाव में उसकी ही जान को खतरा है, फिर भी वो इसके लिए तैयार है. इस बार सर्द ऋतु में बिरवा पूरा सुखा हुआ है और इस पूरे साल एक भी फूल की गुंजाइश नहीं है, जहां एक भी फूल संभव नहीं है, वहाँ लाल गुलाब की सम्भावना तो एक प्रकार की अतिशयोक्ति ही साबित होगी. बिरवा केवल इतना चाहता हैं कि आज की रात चाँद के धवल प्रकाश में तुम अपना सबसे प्रिय गीत गाते-गाते मेरे काँटों को अपने ह्रदय का स्पर्श करवा सकती हो तो शायद इस मौसम में भी फुनगी से लाल गुलाब की उम्मीद रखी जा सकती हैं. किसी के प्रेम के लिए इस तरह अपना सब कुछ सौप देना कोई आसान काज़ नहीं है. कोई दरवेश ही इस तरह अपने आप को होम करना चाहेगा. बुलबुल की हट धर्मिता भी अपने को खो कर उस जमीन को पाने की लगती है जो उसके गीत का सही मूल्यांकन दे सके. इसकी बड़ी कीमत भी वह अपना आखरी गीत गाकर देना चाहती है. क्योंकि उसके बाद तो उसके ह्रदय से निकले रक्त से सीचा लाला गुलाब ही हमारे सामने होगा.
 लड़के के दिमाग में भी कला व कलाकार के प्रति जो संदेह होता है. उसकी धारणा के अनुरूप अपने गीत के पीछे भी बुलबुल का कोई स्वार्थ नज़र आता है. लेकिन अपनी कमरे की खिड़की के आगे लगे पौधे में जब वो लाल गुलाब देखता है तो उसकी सारी धारणाओं पर उसे सर्मिंदगी महसूस होती हैं. इसे देखकर वो इतना खुश होता है कि जैसे उसने जीवन का सबसे अनमोल रत्न पा लिया हो, जिसकी फोरी कल्पना शब्दों में करना मुश्किल हैं. उसके दिए लाल गुलाब को लड़की लेने से मना कर देती है, साथ-ही-साथ यह तर्क भी देती है कि चेम्बरलीन के भतीजे ने जो उसे जवाहरात दिए है जिसका मोल इस लाल गुलाब से कही ज्यादा है. मै पार्टी में उसे ही पहनकर जाना चाहूँगी. यह सुनते ही उसे पास ही एक नाली में उस लाल गुलाब को फेक दिया जो वहा से गुजर रही ठेला गाड़ी के निचे आकर पूरा बिखर गया. क्या आज के सन्दर्भ में बिना किसी दिखावे के प्रेम संभव है? उसने यहीं महसूस किया उसके लिए आपको उन सारी काल्पनिक बातों का सहारा लेना पड़े जिनका होना मोजूदा समय में संभव नहीं हो. जहां पर आपको प्रैक्टिकल होना है उस जगह मेरे जैसे लोगों का प्रेम करना या प्रेम में होना मुश्किल है.
 ऑस्कर वाइल्ड वैसे अपने धार-धार व्यग्य के लिए जाने जाते थे. जिसे ‘विट’ भी कहा जाता है. उसके लिखे का अमेरिका के एलिट क्लास में उपहास व चर्चा का केंद्र दोनों रहता था. लेकिन उनका लिखा एक उपन्यास जो काफ़ी डार्क किसम का था, ‘पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे’ अपनी अद्भत कथा वस्तु के कारण आज भी आपके आमने कई प्रशन लिए खड़ा है. जिसमें लायक खुद की  पंटिंग को देखकर बड़ा परेशान रहता है. वो कोई भी अपराध करता तो पंटिंग उसके दिमाग में चल रहे भावों के अनुरूप अपने आप ही बदलती जाती.
 बुलबुल का जीवन उस रिक्त के समान है जहा आप अपने हिसाब से कुछ जोड़ कर बहुत कुछ पा सकते है. बुलबुल तो केवल सेतु होकर हर प्रमी को उसकी सही परिणति तक पहुंचाना चाहती थी, लेकिन उसके लिए किसी का प्रेम भी उस स्लेट के समान होना चाहिए जहाँ से पहला हर्फ़ लिखा जाए न की किसी और स्पंदन की गंध उसमे समाई हो. जैसा के खुसरों कहते भी है-
“खुसरों दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार

जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.’
                                                                                                          अनिमेष जोशी