About

जोधपुर में कला व संस्कृति को नया आयाम देने के लिए एक मासिक हिंदी पत्रिका की शरुआत, जो युवाओं को साथ लेकर कुछ नया रचने के प्रयास में एक छोटा कदम होगा. हम सभी दोस्तों का ये छोटा-सा प्रयास, आप सब लोगों से मिलकर ही पूरा होगा. क्योंकि कला जन का माध्यम हैं ना कि किसी व्यक्ति विशेष का कोई अंश. अधिक जानकारी के लिए हमें मेल से भी संपर्क किया जा सकता है. aanakmagazine@gmail.com

सदस्यता

सदस्यता लेने हेतु sbbj bank के निम्न खाते में राशि जमा करावे....

Acoount Name:- Animesh Joshi
Account No.:- 61007906966
ifsc code:- sbbj0010341

सदस्यता राशि:-
1 वर्ष- 150
2 वर्ष- 300
5 वर्ष- 750

राशि जमा कराने के पश्चात् एक बार हमसे सम्पर्क अवश्य करे....

Animesh Joshi:- +919649254433
Tanuj Vyas:- +917737789449

प्रत्यर्शी संख्या

Powered by Blogger.
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Blogger templates

Blogger news

Sunday 10 August 2014
कहानी जारी है....                         


                              आज़ वो कबड्डी वाला पाठ पढ़ा रही थी. सुमन ने सभी बच्चो को ग्राउंड में चलने को कहा. चलो बच्चो आज हम ग्राउंड में ही इस पाठ के बारे में समझेगें उसने बच्चो की दो टीम बनाई और कबड्डी का खेल शुरू हो गया पर रितु इस सबसे अलग दूर बैंच पर जाकर बैठ गई. सुमन उसके पास आकर बोली, तुम्हे कबड्डी खेलनी नहीं आती....?” इस बार रितु ने निगाहें उठाकर सुमन को एक नजर देखा और फिर निगाहें नीचे कर घास में कुछ ढूंढने लगी.”'क्या मैं तुम्हारी चोटी ठीक से बना दूँ....? रितु ने फिर निगाहें ऊपर की इस बार उसकी नजरों में सवाल था.... क्यों? उसका दिल किसी तहखाने जैसा था, जो परत- दर- परत ऊपर से सख्त पर इन परतो के अंत में एक कीमती खजाना था. वो खजाना ही तो सुमन को ढूंढना था. वह एक के बाद सारे दरवाजे खोलकर अंदर चली जाना चाहती थी. सुमन बिना उसके जवाब के इंतज़ार किए उसकी चोटी बनाने लगी. रितु ने गुस्से से सुमन के हाथ से कंघा छीनकर फेंक दिया और तेजी से दौड़ते हुए अपनी क्लास में आकर बैठ गई. उसने अपना चेहरा अपनी बाजुओं में छुपा रखा था. सुमन ने प्यार और ममता से भरा हाथ उसके सर पर फिराया. मेरे उस दिन के व्यहवार के लिए मुझे माफ़ कर दो बेटा सुमन के स्वर में प्यार, पछतावा और न जाने कितने भावों का मिश्रण था.
दर्द से दर्द का रिश्ता ही शायद उसे इतना तड़पा रहा था, जो वह रितु के साथ बांट कर कम करना चाहती थी. मैम आप क्यों माफ़ी मांग रही हैं मैं बुरी हूँ बहुत बुरी सब मुझसे नफरत करते हैं मेरे माँ-बाप भी फिर आप क्यों....?" रितु ने शायद अपने इस दर्द को एक अरसे से दबाये रखा था और सुमन के मर्मस्पर्शी दस्तक से उसका दर्द पिघल आया. “नहीं बेटा आप तो बहुत अच्छी हो इस बार सुमन ने उसे परी की तरह ही अपनी बाहों में भर लिया, इस तरह के स्पर्श से अनजान रही रितु सुमन की बाहों में बिखर- सी गई. उसे ये एहसास कभी मिला ही नहीं. कमजोर होते हुए भी उन बाहों में कितनी सुरक्षित महसूस कर रही थी वह. कितना अपनापन और ममता भरा स्पर्श था . उसकी रुलाई रुक नहीं रही थी और सुमन ने उसके आँखों से बहते दुःख को अपने सीने में सोख लिया. आज के बाद कभी मत कहना के तुम बुरी हो.” अगर मैं बुरी नहीं हूँ तो मेरी माँ मुझे अपने साथ क्यों नहीं रखती मैम.... उन्होंने मुझे क्यों छोड़ दिया हैं....?" उस मासूम के सवाल भी कितने मासूम थे पर जवाब न मिलने पर सवाल उसके मन की कुंठाये बन गए थे. बेटा हो सकता है वह तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने लायक न हो.... नहीं मैम वो प्रभात को अपने साथ ले गई मैं रोती रही, चिल्लाती रही पर वह मुझे.... गम किसी घाव से मवाद की तरह की तरह रिस रहा था, दर्द तकलीफ को बढ़ा रहा था सुमन के पास यूँ तो रितु किसी भी सवाल का ज़वाब नहीं था पर वह उसके मन की हर गाँठ को सुलझाने का प्रयास का रही थी, काफी देर तक रितु यूँ ही सुमन से लिपटी अपनी तकलीफों को बांटती रही.  सुमन के क्लास में पहुँचते ही रितु का चेहरा रंगों से भर जाता था. वह अब जीवित नजर आ रही थी. पढ़ाई की तरफ उसका रुझान और बढ़ गया था. रितु रोज कोई- न- कोई बहाना बनाकर सुमन के पास चली आती. न जाने किस तरह उसे पता चला के सुमन को कढ़ी पसंद हैं. वह एक दिन सुमन के लिए अपने हाथों की बनाई हुई कढ़ी लेकर आई. सुमन और रितु के बीच की इन नजदीकियों को हर कोई पहचान चूका था और अब अक्सर दूसरे टीचर्स रितु के द्वारा किये गलत व्यवहार की शिकायत सुमन से करने लगे. सुमन ने उसकी हर गलती पर उसको समझाया और समझाना काम भी कर रहा था. रितु में एक सुधार दिन-प्रतिदिन देखने को मिल रहा था. उसका व्यवहार सरल और व्यवहारिक हो गया था. सुमन खुश थी. एक सुबह जब सुमन रितु की क्लास में पहुंची तो रितु पहले की तरह उसकी बाहों में मुँह छुपाये रो रही थी, सुमन का दिल घबराहट से बैठ गया. क्या फिर उसे तकलीफ पहुँचाने वाली बात हुई हैं? उसने रितु को चुप कराया और उससे उसके रोने का कारण पूछा रितु ने बिना कुछ कहे अपनी दोनों हथेलियाँ आगे कर दी. यूँ तो रितु ने पहले भी अपने टीचर्स से मार खाई है पर कभी उसकी आँखों से पानी की एक बूंद नहीं झरी फिर आज.... बाद में एक बच्चे से पता चला कि मधु मैम ने बिना किसी कारण के पूरी क्लास को पनिशमेंट दिया. जिसमें कुछ शैतान बच्चो की वजह से रितु जैसे बेकसूर बच्चो में पिटाई लग गई. सुमन ने ऐतराज उठाया, मीटिंग में भी इस मसले को रखा गया और अंत में प्रिंसिपल सर ने मधु को सख्त हिदायते दी कि वह बच्चो के साथ नरमियत से पेश आया करे. सुमन की इस शिकायत के बाद तो मानो रितु के प्रति दूसरे टीचर्स और अलर्ट हो गए थे, रितु को भी अब एक सुरक्षाभाव महसूस होने लगा था. वह अपनी हर समस्या को लेकर सुमन के पास चली आती पर एक दिन अचानक.... :ये लीजिए आपके सपोर्ट का नतीजा मधु मैम ने रितु की कॉपी सुमन के आगे फेंक- सी दी. "क्या बात हैं मैम आप इस तरह क्यों बिहेव कर रही हैं....? सुमन ने अपने धैर्य को बनाये रखते हुए शालीनता से पूछा. मैम आपने रितु के बिगड़े मिजाज को और सपोर्ट किया जिसका नतीजा ये है की हम पहले भी इसके लिए भी कोई मायने नहीं रखते थे और अब तो.... मैंने बच्चो को होमवर्क दिया था. दो दिन बाद भी जब मैंने रितु से कॉपी मांगी हैं तो उसने काम किया ही नहीं किया हैं और पूछने पर बस एक चुप्पी.... आप को पता है कितनी इरीटेशन होती है, मेरे बार-बार पूछने पर भी वह सिर्फ बुत की तरह खड़ी रही जवाब देने में तो जैसे उसकी शान घट जायेगी ठीक है मैम आपको आगे से शिकायत नहीं मिलेगी सुमन रितु की हरकत पर वास्तव में शर्मिंदा थी और अब वह ऊपर लगे इस आरोप को हटाने का प्रयास करेगी सुमन सिर्फ क्लास के समय ही रितु से बात करती. दोनों के बीच पिछले दिनों जो आत्मीयता का रिश्ता पनपा था वह धीरे-धीरे टूटता -सा नजर आया. सुमन का साथ न होने पर रितु के चेहरे की आभा फिर से जाने लगी. उसे एहसास हो गया कि सुमन के दिल में जो हमदर्दी उसके प्रति थी अब वह अपने स्थान पर नहीं हैं. उसे इस बात का भी एहसास था कि शायद सुमन मधु मैम की शिकायत की वजह से नाराज हो सकती है पर उसका दूसरा कारण उसके पहले कारण पर हावी न हो पाया. रितु ने कई बार प्रयास किया कि वह सुमन से बात करें पर सुमन ने उसे टालते हुए मना कर दिया. ये शायद उसके विरोध में किया गया अनशन था. सुमन को लगा की रितु ने उसके अपनेपन और प्यार को अपनी तरफदारी समझ लिया. वह रितु को समझा देना चाहती थी कि वह सभी को बराबर प्यार करती है. एक लम्बे समय से सूखे की शिकार जमीन कुछ समय की बारिश पाकर सामान्य कैसे हो जाती है. नतीजतन रितु एक बार फिर से चुप्पी में खो गई . अब वह सब काम करती मगर बिना किसी से कुछ बोले. धीरे-धीरे कुछ दिनों में फिर सब कुछ पहले जैसा था. पर एक खिंचाव-सा सुमन और रितु के बीच अभी भी था. सुमन से रितु की ये खामोशी सही नहीं जा रही थी और रितु से सुमन का यूँ दूर रहना, पर दोनों ही समझती थी की दर्द की टीस दोनों जगह एक जैसी हैं.
              सुमन हारी-थकी, उलझनों के जाल से खुद को दूर करने की कोशिश में थी. वह घर आकर सोफे पर पीठ टिकाये, आँखें बंद किये इस अँधेरे में कुछ सुकून ढूंढने की कोशिश में बैठ गई. तभी एक हाथ ने उसे इस अंधेरे में विलीन होने से पहले ही खिंच लिया. माँ आज़ बाजार जायेगें ना.... नन्ही परी ने अपनी मासूम आवाज में माँ से पूछा. हाँ बेटा अभी माँ थोडा फ्रेश हो जाएँ फिर चलते हैं सुबह स्कूल जाते वक़्त परी ने सुमन से डॉल की मांग रखी थी और सुमन ने उसे शाम का वादा किया था. 'ये लो पानी लो.... थैंक्यू दी बहुत थक गई हो....? हाँ दी बस थोडा ही.... सुमन तुमसे कुछ बात करनी हैं.... हाँ.... कहो ना दी.... आज शेखर की माँ का फ़ोन आया था, वो लोग परी से मिलना चाहते हैं. शेखर के किए पर शर्मिंदा थे, कह रहे थे कि शेखर की वजह से वो लोग अपनी बहु और पोती से थोड़े ही अलग कर देंगे.... शेखर की तबियत ठीक नहीं हैं.” “आपने क्या जवाब दिया दी....?" पानी का ग्लास अपने होंठो से अलग करते हुए सुमन ने पूरी बात सुनने से पहले ही सवाल किया और सुमन के सवाल से रानी ने अपनी बात वहीँ रोक दिया. मैंने उन्हें अभी कोई जवाब नहीं दिया हैं, तुम चाहो तो एक बार बात करके देख लो.... फायदा क्या है दी... मुझे अब शेखर और उसके परिवार से कोई भी रिश्ता नहीं रखना हैं.... जो कुछ हुआ वो सब कम हैं क्या? जानती हूँ उन लोगो को.... सुमन ने ठंडे एहसासों के साथ अपना जवाब दिया. सुमन एक निष्ठुर पत्थर की मूरत में तब्दील हो चुकी थी और उसका यूँ कठोर होना वक़्त की तपन का नतीजा था.         
                         मार्च का महिना आ चूका था. सुमन परी के एडमिशन को लेकर परेशान थी. वह काउंटर से एडमिशन फार्म खरीद कर घर ले गई. खाना खाने के बाद रानी के साथ किचन में काम करते हुए सुमन ने रानी को बताया-मैं परी के लिए एडमिशन फार्म लेकर आई हूँ, कल तक भर कर जमा करना हैं. उसके बाद अप्रैल में जब नया सेशन स्टार्ट होगा तब वह मेरे साथ ही स्कूल जाया करेगी अरे वाह! हमारी परी स्कूल जायेगी कितनी प्यारी लगेगी न परी स्कूल ड्रेस में.... रिअली देख लेना सुमन परी एक दिन तुम्हारा नाम जरुर रौशन करेगी.. उसके मन की उथल-पुथल का कारण कुछ और ही था. आज परी माँ के बिस्तर पर आने से पहले ही सो चुकी हैं. दिन भर की थकान से चूर सुमन भी वही परी के पास लेट गई. थकान के बावजूद नींद तो जैसे खिड़की के बाहर लगे पेड़ की डाल पर जा बैठी हो और वहीँ से आँखें दिखा रही हो. सुमन झटके से उठी उसे कुछ याद आया उसने पर्स से फार्म और पेन निकाला और अपने जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा देने बैठ गई. फार्म पर सबसे पहले स्टूडेंट नेम का कॉलम था. सुमन ने किसी कमजोर विद्यार्थी की तरह सबसे पहले सरल प्रश्न हल करते हुए मदर्स नेम में अपना नाम लिख दिया पर यहाँ भी सवाल ज्यादा सरल नहीं था वह अपने नाम के आगे किसका सरनेम जोड़े वह जो शादी से पहले उसे अपने पिता से मिला था या वह जो शादी के बाद उसे अपने पति से.... क्योंकि हमारे समाज में औरतों का कोई अस्तित्व ही नहीं होता उन्हें दूसरों की पहचान की जरुरत होती है ,पहले पिता और बाद में पति के नाम ही औरत के आस्तित्व की पहचान बन जाते हैं. पर सुमन इन दोनों में से किसी का भी सरनेम नहीं अपनायेगी वह सिर्फ सुमन हैं.... सिर्फ सुमन और वह अपनी बेटी को भी सिर्फ उसका ही नाम देगी किसी सरनेम का ठप्पा नहीं देगी. अगली सुबह स्कूल आते ही सुमन ने काउंटर पर फार्म जमा करते हुए जल्दबाजी में आगे बढ़ गई. उसने बिना किसी इंतज़ार के अपना रास्ता पकड़ लिया. सुमन को क्लास में आता देख सब बच्चे सावधान हो गये. सुमन का मूड उखड़ा हुआ था. लंच में भी वह स्टाफ़रूम में न बैठ लॉन में आकर बैठ गई और घास के तिनको को इस तरह घूरने लगी जैसे अपनी परेशानियों का हल उसे इन्ही सब तिनको के बीच मिलने वाला हैं. सच तो यह था के इन तिनको की तरह ही उसकी ज़िन्दगी बिखरी हुई थी. उसके पास जीने के नाम पर एक मात्र उद्देश्य उसकी बेटी थी. आखिर कैसे वो अपनी बेटी को दुनिया से बचा पाएगी...? सवाल दर सवाल उलझनों की परत दिमाग पर चढती जा रही थी. दो नन्हे हाथ लंचबॉक्स को लिए उसके सामने खड़े थे. जिसमे उसकी पसंदीदा कढ़ी और रोटिया थी. मैम आज आप खाना क्यों नहीं खा रही है, प्लीज मेरे साथ थोडा सा खा लीजिए ये रितु थी जो सुमन को अकेले और परेशान बैठा देख उसके पास आई थी. रितु ने अपने हाथों से एक निवाला सुमन की ओर बढ़ा दिया. सुमन की दबी ममता एक बार फिर रितु को प्यार देने के लिए उमड़ आई. उसने उसके हाथ से निवाला अपने मुँह में रख लिया और उसे अपने सीने से चिपका लिया. उस बंजर जमीन पर आज एक बार फिर प्यार की बारिश हुई. मैम आप मुझसे नाराज थी क्योंकि मैंने मधु मैम के सब्जेक्ट में होमवर्क नहीं किया था और उन्होंने आपको.... पर मैम मैं काम कैसे करती उसमें अपने पापा का इंटरव्यू लेना था और आप तो जानती हैं मैम की मेरे पापा.... मासूम आँखें एक बार फिर दर्द से बह निकली और साथ ही सुमन का दिल भी. सुमन को अफ़सोस था कि वह रितु के इस खालीपन को नहीं भर सकती. समाज में पिता का होना इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं. उसे परेशान करने वाले सवाल अब और कसते चले जा रहे थे. परी को कभी न कभी इस कमी का एहसास जरुर दिलाया जायेगा. और उस वक़्त सुमन के पास उसे जवाब देने के लिए कुछ न होगा.
               परी हमेशा की तरह माँ के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी. सुमन के आते ही वह उसके गले में किसी हार की तरह झूल गई. एक यही एहसास तो था जो सुमन से लिपटे हर कांटे को दूर फेंक देता था. उसके देह का पसीना इस मर्म स्पर्श से महकने लगा था. लाख चिंताओं से घिरे होने के बावजूद अपनी बच्ची का अमूल्य प्यार और स्नेह उसे एक नई ताजगी से भर देता था, पारी उसके लिए उसकी ऊर्जा का स्त्रोत थी. परी जाओ तुम्हे मौसाजी बुला रहे हैं वो तुम्हारे लिए कुछ लाए हैं परी नाचती कूदती माँ को नन्हे हाथों से बाय करते हुए कमरे से ओझल हो गई. रानी के चेहरे पर चिंता की कुछ लकीरें खिंची हुई थी. क्या बात हैं दी.... कुछ डिस्टर्ब लग रही हो? आज शेखर का फ़ोन फिर से आया था, वो परी तुम्हे घर वापस ले जाना चाहता हैं. देखो सुमन तुमने अपने आने वाले जीवन के बारे में जो कुछ सोचा है उस पर एक बार फिर से विचार कर लो, तुम्हारे लिए और परी की आने वाली ज़िन्दगी के जो ठीक हो वो ही फैसला लेना, परी छोटी है अभी अपने पिता की कमी को नहीं पहचानती है पर जब वह समझदार होगी तब शायद सब कुछ इतना आसान नहीं होगा.... और तुम.... रानी ने सुमन को आने वाले वक्त के बारे में आगाह करते हुए समझाया.
                        सुमन की ज़िन्दगी के ठहरे हुए पानी में एक बार फिर किसी पत्थर के गिर जाने से तरंगे फैलने लगी. जब वह पिछले समय को याद करती है तो मन कड़वाहट से जहरीला हो जाता है. पर अगले ही पल परी का चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता हैं. आखिरकार उसकी लड़ाई उसकी बच्ची के लिए ही तो हैं. उसका जीवन तमाम उतार-चढ़ाव और हलचलों के बाद आकर ठहरा था पर यहाँ भी समय ने एक बड़ा पत्थर उसे मार दिया. वह रितु की कमी को तो पूरा नहीं कर सकती पर परी के जीवन की इस कमी को तो पूरा कर ही सकती हैं. क्या वो परी को लेकर स्वार्थी हो गई हैं....? क्या वह जानबूझकर अपनी बच्ची को उसके पिता से दूर कर रही हैं....? सुमन इस सब सवालों के जवाब चाहती है पर कौन दे सकता हैं उसे इन सब सवालों के जवाब....? इस बात का भी तो कोई भरोसा नहीं की शेखर कभी दोबारा वैसा नहीं करेगा....       
           सुमन के लिए फैसला लेना किसी बड़े पहाड़ को पार करने जैसा ही था पर इस पहाड़ के उस पार उसे हरियाली मिलेगी या रेगिस्तान इसका उसे पता नहीं था. दुविधाओं की इस नहर में वह न जाने कब डूबी हुई सो गई उसे पता ही नहीं चला. अगले दिन जब आँखें खुली तो अपने आस-पास वही सवालों और चिंताओं का जाल बिछा पाया जो उसकी खाल से चिपका हुआ था. एक लम्बी नींद के बाद भी वह थकी हुई सी स्कूल पहुंची. रितु की क्लास में पहुँचीं तो उसकी आँखें आज कुछ बोलती- सी नजर आई ,जैसे एक ही बार में बहुत कुछ उंडेल देना चाहती हो. इससे पहले की सुमन आँखों की इस भाषा को समझ पाने की कोशिश करती दरवाजें पर खड़ी एक छाया ने उसका ध्यान खींचा मैम आपसे मिलने कोई आया हैं.... स्कूल के पिओन ने सुमन को इत्ला दी. आप चलिए मैं आती हूँ.... पिओन के जाते ही सुमन ने एक निगाह रितु के चेहरे पर डाली और फिर क्लास से चली गई.   
स्कूल के वेटिंग रूम में एक पुतली-दुबली सुडौल काय वाली एक लेडी, जो शायद सुमन का ही वेट कर रही थी आगे बढ़कर बोली- आप सुमन जी हैं ना....? जी हाँ.... पर आप कौन? मैं प्रमिला मेहता, रितु की माँ हूँ.... रितु के दादाजी ने आपके बारे में बताया था इसलिए आपसे मिलने चली आई. दरअसल मैं आपको थैंक्स कहने आई आई हूँ आपने मेरी बेटी का ध्यान रखा खामोश आँखें अपने अंदर किसी तूफ़ान को छिपाए हुए बैठी थी. सुमन को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सामने बैठी औरत जिसने अपनी बच्ची को अकेले और तरसते हुए छोड़ दिया था वह इतनी सहज और सरल हो सकती हैं.                    
मैं जानती हूँ मैम शायद आप भी दूसरे लोगो की तरह मुझे दोषी मानती हैं, पर सब कुछ वैसा नहीं हैं.... रितु के पिता के साथ मेरा रिश्ता खत्म हो जाने के बाद मेरे लिए हालात बहुत मुश्किल हो गये थे. एक तरफ दो बच्चो को लेकर एक नये सीरे से ज़िन्दगी को शुरू करने की जद्दोजहद और दूसरी तरफ अपने आप को साबित करने की चुनौती. मैं दोनों ही बच्चो को छोड़कर जाना चाहती थी क्यूंकि सब कुछ मैं ही क्यों झेलू क्या मेरी का गलती थी....?अंहकार उसके अंदर था. क्या ये दोनों बच्चे मेरे साथ-साथ उसकी जिम्मेदारी नहीं थे....? मैं प्रभात को अपने साथ ले गई क्योंकि वह बहुत छोटा था हमारी लड़ाई में मैं दुखी थी बस सबकुछ ठीक करते-करते इतने साल लग गये. मैं रितु और बाऊजी को अपने साथ ले जा रही हूँ सुमन को लग रहा था जैसे वह किसी आईने के सामने बैठी हैं सामने उसका ही अक्स उसे उसकी कहानी बयान कर रहा हैं.
                मैम आपको सर ने ऑफिस में बुलाया हैं स्कूल के पिओन ने सुमन को सूचना दी. आप चलिए मैं आती हूँ सुमन ने अपने आप को एकाग्र करते हुए जवाब दिया. मे आई कम इन सर ऑफिस में बैठे प्रिंसिपल सर से सुमन ने इजाजत माँगी प्लीज अंदर आ जाइये मैम.... आपने शायद फार्म जल्दबाजी में भरा हैं. आपने अपनी बच्ची के फॉर्म पर उसका फादर्स नेम ही नहीं लिखा. अगर उसकी जगह कोई और पेरेंट्स होता तो हम फॉर्म को कैंसिल कर देते बट आपका ख्याल करते हुए मैंने आपको याद दिलवाने के लिए बुलवाया हैं. ये लीजिए फॉर्म को कम्प्लीट कर दीजिये ताकि यह काउंटर पर जमा हो सके प्रिंसिपल सर ने फॉर्म और पेन सुमन के आगे बढ़ा दिये. सुमन शांत और ठंडी पड गई. उसे पता था यह उसने जानबूझकर किया है पर अब....? सर क्या बिना फादर्स के नेम को फील किए फॉर्म सबमिट नहीं होगा....? कैसी बातें कर रही हैं आप मेम, बच्चे को उसके फादर के नेम से ही तो पहचाना जाता हैं. फिर आप उसे पिता का नाम क्यों नहीं देना चाहती हैं....? यही तो सवाल हैं सर बच्चे को उसके फादर नेम से ही क्यों पहचान मिलती हैं....? सिर्फ एक बीज डाल देने से समाज का मर्द पहचान देने का अधिकारी क्यों बन जाता हैं....? आखिर क्यों....? सुमन के अंदर की आग शब्द रूपी लावे की तरह बाहर आ रही थी. शब्द किसी अंगारे की तरह उसकी जुबान पर आ रहे थे जिन्हें अब अंदर नहीं दबाये रखा जा सकता था.

0 comments: