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Saturday 2 August 2014


                             शालिनी श्रीवास्तव



                  केस न. 212 कचहरी में कोर्ट के अंदर से आवाज आई. चंद पलों में मानों एक लम्बी दूरी तय करनी हो, मानो इतने भारी हो गये की उठाये न उठ रहे हैं और तभी उसकी आँखों में अपनी नन्ही सी बेटी का सहमा, डरा और दर्द से कराहता हुआ चेहरा सामने आया. उसके शरीर में जैसे एक झनझनाहट दौड़ी हो, भारी ही सही पर उसे अपने इन कदमों से अंदर जाना ही होगा. वह जिससे अलग होने का शौक मना रही हैं उसके साथ रहकर भी कौन- सा सुख से जी पा रही हैं....!
 “सुमन अंदर चलो तुम्हारे केस का न. आ चुका हैं, दो बजने वाले हैं अगर लंच हो गया तो फिर देर शाम तक का इंतज़ार करना पड़ेगा.” मनोहर ने लगभग उसको किसी नींद से जगाया हो, किसी गहरे चिंतन से.... लेकिन चिंतन....? आज और अब इस वक़्त क्यों....? उसने तो छ: महीने से इस दिन का गिनगिनकर इंतज़ार किया था फिर आज उसका मन डबडबा क्यों रहा हैं..? मन और कदम भारी क्यों हो गये हैं...? “आप दोनों की छ: महिने की मौहलत खत्म हो चुकी हैं अब बताये क्या फैसला हैं आप दोनों का..?” जज ने बड़े लापरवाह और रुखे तरीके से पूछा. “सर मिसेज सुमन डाइवोर्स चाहती हैं आप मि. शेखर से पूछ ले” मनोहर, सुमन के वकील ने जज के सामने प्रस्ताव रखा. “मि. शेखर भी डाइवोर्स के लिए तैयार हैं जज साहब” शेखर के वकील ने भी दोनों के रास्ते अलग करने पर मोहर लगा दी. कागज़ के एक टुकड़े पर दोनों के साइन और चार सालो का रिश्ता, साथ, कसमें सब कुछ खत्म. वह घर जिसे उसने अपने माँ-बाप की मर्जी के खिलाफ जाकर बसाया था; आज उस घर से भी उसका डेरा उठ गया, न जाने कहाँ से और कैसे उसके घोसले की गांठे ढीली हुई और तिनका-तिनका करके उसका आशियाना बिखर गया.

“परी सो गयी क्या....? रानी ने बेड से पीठ लगाए उदास बैठी सुमन से पूछा. “हाँ दी, आज पता नहीं क्यों बहुत परेशान किया हैं इसने, बड़ी मुश्किल से सोई हैं” सुमन ने अपनी बिखरी हुई हालत सुधारते हुए जवाब दिया. “सुमन क्या तुम्हें शेखर से अलग होने पर दुःख हैं....?” रानी ने सुमन के मन को टटोलना चाहा. “कैसा दुःख दीदी अब तो हर एकसास भूल चुकी हूँ उसके साथ रहने और न रहने से का क्या फर्क पड़ता हैं जिसके लिए हमारा कोई मतलब ही न हो, मैंने शेखर को हमेशा समझाना चाहा दी, मैंने उसकी हर नियति को सहा पर मेरी सहनशीलता उस दिन जवाब दे गई जब उसने मेरी ढाई साल की बेटी को बेड से नीचे फेंक दिया सिर्फ इसलिए कि मैंने उसके साथ सोने के लिए मना कर दिया था....! कितना खून बहा था मेरी बच्ची का.... मैंने अपने बहते खून की कभी परवाह नहीं की उससे प्यार जो किया था, पर जब बात मेरी बेटी की आई तो सहनशक्ति ने जवाब दे दिया. वो बच्ची उस जानवर के आते ही डर और दहशत से मेरे पीछे आकर छिप जाती थी, अब आप ही बताइये ऐसे में क्या मैं उसे एक अच्छी लम्बी परवरिश दे पाती....? शेखर ने तो कभी हमारी जरूरतों का ख्याल ही नहीं किया छोटी –से- छोटी जरुरत के लिए मुझे लम्बा इंतज़ार करना पड़ता था वह भी न जाने कितनी ही लड़ाइयों और झगड़ो के बाद पूरी होती, धीरे-धीरे बेटी बड़ी ही होगी, फिर उसकी जरूरते....! मैंने कहा की मैं कहीं टीचिंग कर लूँ तो उसे यह भी गवारा नहीं था. मैं तंग आ गई थी रोज-रोज के इस तमाशे से. सच कहूँ दीदी अगर मेरे सामने इस बच्ची का भविष्य न होता तो कब का मौत को गले लगा लिया होताकहते-कहते सुमन की आँखें के किनारें नदी में उफ़ान के कारण बह निकले जो गले से होते हुए कंधो पर आकर विलीन हो गये. रानी ने तुरंत उसे अपने से लिपटा लिया और दिलासा देने का प्रयास किया वह उसकी पीठ को सहलाती और प्यार से पुचकारते हुए उसके आंसुओ को अपनी साड़ी के पल्लू में सोख लिया. मेरा घर टूट गया दी.... आंसुओ से रुंधे गले से बस इतना ही निकल पाया. क्या यह घर तुम्हारा घर नहीं हैं सुमन....? रानी के पति और सुमन के जीजाजी ने सुबकती हुई सुमन से पूछा. ऐसी बात नहीं हैं जीजाजी सुमन ने अपने स्वर को संभालते हुए जवाब दिया. देखो बेटा ज़िन्दगी में कभी-कभी गलत फैसले
हो जाते हैं पर इसका मतलब ये तो बिलकुल नहीं की हम ज़िन्दगी जीना ही छोड़ दे और वैसे भी गमों और तकलीफों के बिना भी तो हमें ख़ुशी का एहसास नहीं होंगा. जो बीत गया अगर उसे मुठ्ठी में बंद करके सीने से लगाए रखोगी तो सिवाय तकलीफों के कुछ नहीं मिलेगा, तुम्हें तो एक नये साहस के अपनी बच्ची के लिए एक नई ज़िन्दगी की तैयारी करनी हैं. इस तरह फिजुल में वक़्त जाया मत करो आने वाले वक़्त के बारे में सोचो जो हो गया वह रात थी अब सवेरा ही आयेंगा वकालात करते हुए मनोहर ने ऐसे ही न जाने कितने घरो को टूटते हुए देखा था. ज़िन्दगी के इन्ही अनुभवों ने उसे सहनशील बनाया .
जीजाजी के शब्द उसके जख्मों पर मरहम का काम कर गये. वह अगले दिन तैयार होकर अपने उस स्कूल गयी जहाँ पर उसने शादी से पहले चार साल पढाया था. उसके अच्छे व्यवहार के कारण सब उससे बहुत स्नेह करते थे. इतने लम्बे समय के बाद सुमन को अपने ऑफिस में बैठा देख प्रिंसिपल मैम ने पूछा- बड़े दिनों के बाद याद आई हमारी सुमन, तुमने शादी क्या की मानो गायब ही हो गयी और बताओ सब कैसा चल रहा हैं? आपको तो पता हैं मैम मैंने माता-पिता की मर्जी के अगेंस्ट जाकर शादी की थी इसलिए घर तो आना- जाना बंद ही था.
शेखर की जॉब आगरा में लग गई थी तो फिर वहीँ सैटल हो गई थी. और यह बेटी हैं तुम्हारी ? मैम ने नन्ही पारी की तरफ इशारा करते हुए पूछा. “हाँ मैम.... मैम क्या स्कूल में कोई वेकेंसी हैं? वेकेंसी....! क्या दोबारा से ज्वाइन करना हैं? हाँ मैम कुछ ऐसा ही सोच रही हूँ क्या शेखर का ट्रान्सफर यहाँ हो गया हैं...,? मैम ने बड़े सरल भाव से पूछा. नहीं मैम मैं और शेखर अब साथ नहीं हैं हमारा डिवोर्स हो चूका हैं सुमन ने निगाहें नीचे किये हुए ही जवाब दिया.
 ओ आई ऍम सॉरी बट नो प्रॉब्लम सुमन होता हैं कभी-कभी ज़िन्दगी में, तुम निराश क्यों होती हो सब ठीक हो जायेंगा मैम ने भी उसका हौसला बढाया. मैम क्या मुझे यहाँ जॉब मिल सकती हैं? सुमन ने एक बार फिर पूछा. देखो सुमन ये मिड सेशन हैं मैं टीचर्स को अपोइन्ट कर चुकी हूँ फिलहाल तो कोई जगह खाली नहीं हैं लेकिन हाँ अगर कोई जगह निकलती हैं तो मैं तुम्हे जरुर फ़ोन करुँगी तुम मुझे अपना नंबर दे जाना, मुझे भी तुम्हारे जैसी टीचर की जरुरत हैं पर किसी को हटाना भी तो सही नहीं हैं ठीक हैं मैम आप मेरा नंबर नोट कर लीजिए.
सुमन एक निराशा के साथ घर की तरफ बढ़ने लगी. तीन साल की परी भी अपनी माँ के साथ-साथ चुप चाप चल रही थी. तीन साल की उस नन्ही- सी बच्ची में कुदरत ने इतनी समझ दी थी वह माँ के दर्द को महसूस करती थी. अपने छोटे-छोटे कदमों से वह अपनी माँ के साथ चल रही थी अचानक अपनी बदहवासी में चल रही सुमन ने अपने पल्लू में एक खिंचाव महसूस किया. वह तुरंत मुड़ी और परी ने माँ की तरफ देख झट दोनों हाथ गोद में आने के लिए बढ़ा दिये सुमन ने भी ममता के साथ उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसकी आँखें पनीली हो गई. नन्ही पारी ने अपनी छोटी-छोटी हथेलियों से माँ के आंसुओ को पौंछ डाला और बोली- मम्मा, पापा गंदे, तुम मत रोओ हम उनके पास कभी नहीं जायेंगे अपनी बेटी की इस नफरत से उसे मानो एक डर लगने लगा था. वह उस बच्ची के दिल में इस नफरत को आगे तक पलने नहीं देना चाहती थी. उसने निश्चय किया वह अब परी के सामने शेखर का नाम तक नहीं लेगी. वह अपनी बच्ची को इस डर दहशत और नफरत की गिरफ्त से निकालेगी वह उसे एक खुशहाल माहोल देगी.
 क्या कुछ हुआ सुमन? खाने की टेबल पर साथ खाना खाते हुए मनोहर ने पूछा.मिड सेशन हैं कोई वेकेंसी नहीं हैं जगह खाली होते ही फ़ोन करने को कहा हैं मतलब टाल दिया, खेर अगर जॉब ही करनी हैं तो मेरे दोस्त का न्यू स्कूल हैं अभी नया-नया ही खुला हैं टीचर्स रिक्वायरमेंट हैं चाहो तो वहां ट्राई कर लो जी ठीक हैं सुमन ने जीजाजी से कोई प्रतिवाद करना ठीक नहीं समझा और एक नपा तुला- सा जवाब दे दिया. अगली सुबह सुमन फिर जल्दी उठ कर तैयार हो गई. ‘दीदी आज मैं परी को अपने साथ नहीं ले जाउंगी, इतनी धुप हैं बेकार में परेशान हो जायेंगी ठीक हैं सुमन, देखकर जाना अगर जरूरत पड़े तो जीजाजी को फ़ोन कर लेना ठीक हैं दी.
       नया शहर सुमन के लिए अजनबी नहीं हैं लेकिन फिर भी चार सालो में बहुत कुछ बदल गया हैं. शहर के हर कोने से उसकी यादें जुडी हैं, शेखर और उसका प्यार जुडा हैं. वो दिन वो शाम, वो मिलना, रूठना, मनाना, परेशान होना, रोना और फिर दोनों का एक होना सब कुछ.... हाँ सब कुछ यहीं तो घटा था, यहीं तो बीता था. कितना हसीन था वो सब कुछ पर सब कुछ कच्चे कांच का बना हुआ जिसकी मियाद बहुत कम सब कुछ कितनी जल्दी ही घट गया कितनी जल्दी बदल गया, बदल तो उसकी आत्मा भी गई थी उसका एहसास, उसका साथ, कैसा साथ....?(एक सवाल खुद से ही और जवाब भी खुद से ही). साथ.... डर का, भयाभय साये का. उसको दूर रखना हैं अपनी बच्ची से. परी अभी छोटी हैं शायद वह सब कुछ बीता हुआ भूल जायेंगी.  बस किसी भी तरह शेखर का नाम दोबारा उसके सामने न आये, न उसके जीवन में और न उसकी बच्ची के जीवन में.
आपकी क्वालीफिकेशन तो हमारे स्टैण्डर्ड के हिसाब से कम हैं, बट आपको एक्सपीरियंस अच्छा हैं एंड सेकंड थिंग इस देट हमें नीड भी हैं. तो ठीक हैं आप कल से ज्वाइन कर सकती हैं थैंक्यू, सर थैंक्यू सो मच सुमन के चेहरे पर आज बहुत दिनों के बाद थोड़ी हरियाली देखने को मिली हैं. वरना ये पतझड़ तो जैसे थम ही गया था उसके जीवन में. शायद यह एक नयी शुरुआत हैं उसके जीवन की.
स्कूल का मौहाल लगभग पुराने स्कूल जैसा ही था. सुमन जिस किसी क्लास मैं जाती बच्चे भरपूर गर्मजोशी के साथ उसका स्वागत करते. धीरे-धीरे वह मौहाल में घुलने-मिलने लगी थी. बच्चो के बीच रहकर पुरानी यादें धुंधलाने लगी थी. ज़िन्दगी लगभग सामान्य- सी हो चली थी. नन्ही परी दोपहर में बड़ी बेसब्री से अपनी माँ के आने का इंतज़ार करती. माँ के आते ही उसका फुल- सा मुरझाया चेहरा खिल उठता. सुमन भी उसे सीने से लगाकर एक लम्बी सांस भरती और उसे अपने में छुपा लेती. सुमन क्लास में हिंदी पढ़ा रही थी. सब बच्चे ध्यान से उसकी बातें सुन रहे हैं सिवाह एक के.... रितु स्टैंडउप एंड टेल मी अभी- अभी मैंने क्या समझाया था? उसने सुमन की बात पर कोई रिएक्शन नहीं किया. वह चुपचाप ज़मीन के एक कोने को घूरती रही उसके ऐसे स्वभाव पर सुमन को खीझ हुई. उसने शब्दों को फिर से दोहराया. इस बार रिएक्शन हुआ. मगर उम्मीद से परे. रितु ने अपनी बेंच पर रखी किताब को एक तरफ फेंक दिया और रोते हुए दौड़कर क्लास से बाहर चली गई. सुमन को समझ में नहीं आया कि पिछले कुछ पलों में क्या घटा और क्यों....? क्या उसे कोई दिक्कत हैं....? हाँ! मेरे शब्द कठोर थे. पर इतना अलग रिएक्शन....? शायद कोई प्रॉब्लम हैं. मुझे बात करनी होगी उस बच्ची से सुमन रितु के रिएक्शन से परेशान हो गयी थी. उसे अपने शब्दों के लिए अपनी कठोरता के लिए ग्लानि महसूस हो रही थी और वो रितु के रिएक्शन की वजह और कारणों का पता लगाना चाहती थी. क्या वाकई ये उसके शब्दों का रिएक्शन था या कुछ और....!
आज स्कूल में पेरेंट्स-टीचर्स मीटिंग हैं.
रितु की क्लास टीचर मधू मैम हैं. सुमन उनसे रिक्वेस्ट करती हैं कि अगर रितु के घर से कोई आये तो उसे उनसे मिलवा दे कुछ जरुरी बात करनी हैं. क्या रितु के मिसबिहेव की कम्प्लेन करनी हैं? जरुर कीजिए, रिअली शी इज वैरी ऐरोगेन्ट गर्ल सुमन ने मिस मधू की बात पर कोई रिएक्शन नहीं किया बस दोबारा अपनी बात दोहरा दी. आप मुझे उनसे मिलवा जरुर दीजिएगा ओ के मैम आई विल मीटिंग लगभग खत्म होने वाली थी. समय बीतता जा रहा था शायद रितु के घर से कोई आया ही नहीं सुमन खुद से ही बुदबुदाई मैम आपको ऑफिस में बुलाया हैं पीओन ने आकर सुमन को कहा, सुमन को समझ नहीं आया की इस वक़्त ऑफिस में....? क्या काम हो सकता हैं? मे आई कम इन सर.... यस मैम प्लीज कम इन. आप रितु के पेरेंट्स से मिलना चाहती थी. ये रितु के ग्रान्डफादर हैं. कहिए आपको जो कम्प्लेन करनी हैं आप कर सकती हैं सर मुझे कोई शिकायत नहीं करनी हैं बस कुछ बातों की जानकारी चाहिए अगर आप परमिशन दें तो मैं बाहर बैठकर इनसे बातें कर सकती हूँ? ओ के मैम जैसा आपको ठीक लगे आइये बाउजी हम बाहर बैठकर बातें करते हैं सुमन रितु के दादाजी को स्कूल के पार्क में लगी एक बैंच पर ले गई जहाँ वह आराम से उनसे बाते कर सके. बाउजी माफ़ कीजिएगा कि मैं आपके पारिवारिक मामलों में दखल दे रही हूँ पर मेरे लिए यह जानना बहुत जरुरी हैं क्यूंकि रितु मुझे कुछ डिस्टर्ब -सी लगती हैं. उसका जिद्दीपन उसके अंदर चल रहे किसी प्रतिवाद का नतीजा लगता हैं.
मैं आपसे बस इतना जानना चाहती हूँ, क्या आपके घर का माहौल सामान्य हैं....? मेरा मतलब हैं क्या घर में किसी तरह का तनाव हैं....? सुमन के सवाल से सामने बैठा व्यक्ति अचंभित नहीं हुआ बल्कि उसकी बूढी आँखें गम से छोटी हो गई पर तुरंत अपने को सहज करते हुए उसने सुमन के प्रश्न का उत्तर दिया- मैम घर का माहौल तो घर में रहने वाले लोगो से बनता , मेरे घर में मेरे और रितु के अलावा कोई नहीं रहता.” यह कहकर वो चुप हो गए.सुमन ने पूछा-  “ रितु के माँ-बाप उसके साथ क्यों नहीं रहते....? सुमन का सवाल यूँ तो सरल और सामान्य था पर इस बार शायद बूढी आँखें दर्द को संभाल रखने में नाकामयाब रही और बह निकली. सुमन का दिल पहले ही दर्द से टुटा हुआ था. उसे बस आशंका थी कि क्या कारण रहा होगा पर जब बूढ़े इंसान ने बयान किया तो उसका दिमाग मानो अपनी सोचने की शक्ति खो बैठा हो. रितु के जन्म तक सब कुछ अच्छा था बेटा. मेरा बेटा और बहु दोनों एक ही हॉस्पिटल में डॉक्टर थे. दोनों ने अपनी पसंद से शादी की थी. मेरी पत्नी उस वक़्त जिंदा थी. घर  खुशियों और पैसों से भरा हुआ था रितु के आ जाने से मानो हमारे घर एक नयी ख़ुशी आई हो. पर इसके जन्म के बाद से बेटे-बहु में रोजाना की लड़ाईयां होती मेरा बेटा चाहता था की बहु घर पर रहकर रितु की देखभाल करे और जब वह थोड़ी बड़ी हो जाये तब वह दोबारा से हॉस्पिटल ज्वाइन कर सकती हैं. पर बहु का कहना था कि एक बार प्रैक्टिस छोड़ने से उसका कैरियर बर्बाद हो जायेगा. इन्हीं सब में तीन साल गुजर गये तब रितु के छोटे भाई प्रभात का जन्म हुआ. मेरे बेटे ने फिर से अपनी वहीँ जिद्द दोहराई और बहु ने फिर वाही कारण रखा. मगर इस बार लड़ाई कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गई. दोनों ने एक-दुसरे से अलग होने का फैसला ले लिया. रितु जब केवल पाँच साल की थी. माँ-बाप को इस तरह अलग होते देख उसके मासूम दिल को गहरा आघात पहुँचा था. बहु एटा में जाकर प्रैक्टिस करने लगी और बेटा दिल्ली. बहु प्रभात को तो अपने साथ ले गई पर रितु को यहीं हमारे पास छोड़ गई जब तक इसकी दादी रही उसने एक माँ की तरह इसका ध्यान रखा मगर अभी दो साल पहले उसका देहांत हो गया और तब से मैं ही रितु की देखभाल कर रहा हूँ. पर बेटा बुढा शरीर उस बच्ची की कहाँ तक और कैसे देखभाल करे. रितु को क़िताबे पढने का शौक हैं. मैंने एक पूरा कमरा उसके लिए किताबों से भर दिया. उसकी जरुरत की हर एक चीज़ उसके बोलने से पहले लाकर देता हूँ कहीं भी कोई कमी नहीं रखता. हर महीने इसके माँ-बाप पैसे भिजवा देते हैं जिससे हमारा खर्च चलता हैं. मैं इसे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने देता कमी अगर है तो बस....’ बुढा शरीर दुःख और चिंता से घुल गया था. आवाज में कंपकंपाहट साफ़ महसूस हो रही थी. इनके जाने के बाद क्या होगा उस बच्ची का....! बाऊजी क्या रितु के माँ-बाप में से कोई भी इसे अपने साथ रखने को तैयार नहीं है....?आखिर बेटी है उनकी कोई तो चिंता होगी उन्हें अपनी बेटी की....?” अब क्या बताऊ.... बेटा दोबारा शादी करना चाहता है और बहु बेटी की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती है. कहती है वह एक बच्चे को ही बहुत मुश्किल से संभाल पाती हैं. माफ़ करना बाऊजी पर आप कितने साल इस बच्ची की देखभाल कर लेंगे आपके जाने के बाद इस बच्ची का क्या भविष्य होगा कभी सोचा है आपने....? सुमन कष्ट से बिफर गई जानता हूँ बेटा तुम्हारी तरह मैं भी इस चिंता से ग्रस्त हूँ. अगर तुम कोई रास्ता सुझा सको तो जरुर बताना तुम्हारा बहुत एहसान होगा.... अपनी बात को किसी कष्ट के साथ पूरा करते हुए रितु के दादाजी अपनी छड़ी के सहारे खड़े हुए और अपने दुःख को संभालते हुए वहां से चले गये. सुमन वहाँ बैठे-बैठे सोचतीं रही,यकायक उसे  परी और रितु का एक मिश्रित चेहरा दिखने लगा. मानों दोनों ही किसी रिक्त को पकड़ना चाहती है,जो अभी दिखाई नहीं दे रहा हैं...
           परी ने माँ की उदासी को भांप लिया है आज माँ ने खाना भी ठीक से नहीं खाया हैं. आज माँ खोई-खोई हैं. आज माँ परी से नजरे नहीं मिला रही हैं. माँ की उदासी कारण वह नासमझ दिमाग महसूस जरुर कर लेता है पर माँ की उदासी को दूर करने का उपाय उसे नहीं पता. अचानक परी को कुछ याद आया. वह बेड से नीचे उतरी और दूसरे कमरे से अपने नन्हे हाथो में कुछ छुपाकर ले आई. सुमन ने परी को जाते हुए देखा था और इससे पहले की वह उसे आवाज दे वह उसकी नजरों के सामने हाजिर हो गई. ये क्या है बेटा....?' सुमन ने नन्ही परी के हाथों को देखकर पूछा. परी ने अपने दोनों हाथ पीछे की ओर किए हुए कुछ छुपा रखा था माँ के पूछने पर उसने माँ के सामने अपनी बनाई हुई ड्राइंग रख दी. माँ ये मैं और ये आप, ये मासी और ये मौसाजी और ये हमारा घर परी अब कुछ बड़ी हो चली थी, उसका बढ़ना ही तो चिंता का कारण हैं. उसकी उदासी की वजह. सुमन ने तुरंत परी को सीने से चिपका लिया और जकड़ लिया. सुमन तैयार हो गई....? हाँ दी बस निकलने वाली हूँ परी इस साल चार साल की हो जायेगी.उसके एडमिशन के बारे में कुछ सोचा हैं.... हाँ दी मैं भी यही सोच रही थी, अगले महीने स्कूल में एडमिशन फार्म मिलना शुरू हो जायेंगे तब देखते हैं.... अच्छा तो अब मैं चलती हूँ लेट हो रहा हैं बाय.... परी की दुनिया का दायरा बढ़ते ही दुनिया के सवाल उसके सामने आने शुरू हो जाऐगे. सुमन क्या सोच रही हो बैल हो चुकी हैं क्लास में नही जाना.... मधु मैम ने सुमन को जगाया आई ऍम सॉरी मैम मेरा ध्यान कहीं और था.... ध्यान तो अब भी उसका कहीं और ही हैं. क्लास, रितु, उसकी उदासी और वह. फिर मन में एक विचार आया. क्या मैं इस बच्ची की उदासी को दूर नहीं कर सकती....?”

शेष कहानी अगले रविवार को....

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