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जोधपुर में कला व संस्कृति को नया आयाम देने के लिए एक मासिक हिंदी पत्रिका की शरुआत, जो युवाओं को साथ लेकर कुछ नया रचने के प्रयास में एक छोटा कदम होगा. हम सभी दोस्तों का ये छोटा-सा प्रयास, आप सब लोगों से मिलकर ही पूरा होगा. क्योंकि कला जन का माध्यम हैं ना कि किसी व्यक्ति विशेष का कोई अंश.
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Monday 5 January 2015
यह तस्वीर किसी भी दर्शक को पहली झलक में ही खुद से बाँध लेने का माद्दा रखती है। प्रथम दृष्ट्या ही ये तो अनुमान हो जाता है की ये तस्वीर अपने जेहन में कही न कही कोई बहुत गहरी बात समेटे है, इस कृति की कर्ता कुछ तो गूढ़ सन्देश पहुंचाना चाहती हे अपनी कुंची से। पर क्या? आखिर वो कौनसी बात है जो चित्रकार इस चित्र में बताना चाहती है? एक बेरंग सफ़ेद औरत के वृतचित्र में निहित करके क्या समझाने का प्रयत्न किया जा रहा है? इन सभी क्या का जवाब जानने के लिए दर्शक को काफी देर मननशील हो इस तस्वीर को एक टक निहारना पड़ेगा , कुछ सोचना पड़ेगा। काफी देर तक इस सांकेतिक चित्र को दार्शनिक दृष्टी से देखने पर में इतना समझ पाया की ये चित्र एक पश्चिमी पौराणिक कथा को दृष्टिगत रखते हुए खिंचा गया होगा। ये कथा है इस संसार के प्रथम नर और नारी की , ये कहानी है आदम और ईव की। अगर चित्र के मर्म को समझना है तो उस प्रसंग का उल्लेख आवश्यक है। कथा कुछ यु है की, ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तो प्रथम नर का सृजन किया , वो नर था आदम एवं हर क्षेत्र में उसका सहयोग करने की लिए ईव नामक नारी की रचना की। तत्पश्चात ईश्वर ने एक सुन्दर उपवन की रचना जिसे बाइबिल में " गार्डन ऑफ़ इडन " कहा गया है। उसमे विविध प्रकार के सुस्वाद फलयुक्त वृक्ष लगे थे, भगवान् ने आदम व ईव को एक विशेष पेड़ के एक फल विशेष ( बाइबिल के अनुसार "
ट्री ऑफ़ नॉलेज ओफ गुड एंड ईविल " ) को खाने से मना किया। भगवान् के जाते ही वहा एक सांप
( बाइबिल के अनुसार सैतान ) आकर आदम से वो फल खाने को बोलता है परन्तु आदम मना कर देता है, फिर सांप ईव के पास जा कर उसे फल खाने को उकसाता है , ईव नारी सुलभ चंचलता दिखाते हुए फल खा लेती है, तथा आदम से भी खाने को कहती है। आदम खाने से मना करता है परन्तु त्रिया हठ के आगे तो त्रिदेव हार गए आदम की क्या बिसात थी, सो उसने भी वो फल खा लिया।
। फल खाते ही उनके वस्त्र गायब हो गए ( शायद इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए चित्र में ईव को निर्वस्त्र दिखाया गया है ) , उसी समय ईश्वर का प्राकट्य होता है एवं वे सभी को श्राप देते है , सांप को मनुष्य जाती का शत्रु बन जाने का ( जो की सांप आज तक है ) , आदम को हमेशा संघर्ष करने का एवं चूँकि ईव सबसे ज्यादा गुनाहगार थी , उसे इश्वर ने श्राप दिया की तुम्हे प्रसव पीड़ा सहन करनी होगी एवं पुरुष हमेशा तुम पर अधिकार जमा कर रखेंगे। ये कहानी तो यही समाप्त होती हे , परन्तु यहाँ आरम्भ होती है नारी पर अत्याचार की कभी न समाप्त होने वाली कहानी ......उस पर पुरुष के अधिकार की कथा ....सदियों से चली आ रही स्त्री को भोग की एक वास्तु मात्र मान लेने की परंपरा। चित्रकार ने अपने चित्र में नारी की वाही पीड़ा उभारने का प्रयास किया है जिस में वो काफी हद तक सफल प्रतीत होती है। इसमें उन्होंने सांकेतिक रूप से ये प्रश्न उठाने की कोशिश की है की आखिर क्यूँ नारी को हर गलती का जिम्मेदार ठहराया जाता है , आखिर क्यूँ पुरुष नारी को प्रताड़ित करने , उसे अपनी किसी निजी संपत्ति की तरह भोग करने को खुद का ईश्वर प्रदत्त जन्मसिद्ध अधिकार मान बैठा है। चित्र में उकेरी गयी नारी आज की सरती जाती का प्रतिनिधित्व करती है , अन्याय से दुखी भग्न ह्रदय को ईव की आधी खायी सेब से प्रदर्शित किया है तो वही हर पीड़ा सह सह कर बेरंग हो चुके नारी जीवन को दर्शाने के लिए चित्र में नारी को स्वेत रंग में दिखाया है। अधकटे दिल को विपरित दिशा में दिखा कर भी भरी व्यंग्य किया गया है जो की दर्शक की मनन शक्ति के अनुरूप अपना अर्थ बदलता है। चारो और रक्तवर्ण से युक्त प्रतिवेश आज के असुरक्षित एवं भयपूर्ण परिवेश को इंगित करता है। आज जब चारो और नारियो पे हो रहे अत्याचार चरम परहै तो यह चित्र विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाता है। आस पास शांति की दया याचना करने स्वेत पंखो के भावो की यदि शब्दों में रूपांतरित किया जाए तो उनकी प्रतिध्वनि शायद येही कहे की
नारी तेरी यही कहानी , आँचल ,में दूध आँखों में पानी
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