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जोधपुर में कला व संस्कृति को नया आयाम देने के लिए एक मासिक हिंदी पत्रिका की शरुआत, जो युवाओं को साथ लेकर कुछ नया रचने के प्रयास में एक छोटा कदम होगा. हम सभी दोस्तों का ये छोटा-सा प्रयास, आप सब लोगों से मिलकर ही पूरा होगा. क्योंकि कला जन का माध्यम हैं ना कि किसी व्यक्ति विशेष का कोई अंश.
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Sunday 24 August 2014
शालिनी कौशिक
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Sunday 17 August 2014
तनुज व्यास
सुपरहीरो शब्द सुनते ही जेहन में एक साथ कई तस्वीरें उमड़ने लगती हैं- बैटमैन, स्पाइडरमैन, सुपरमैन, आयरन मैन, एक्स-मैन, थोर, जिन्होंने अच्छाई-बुराई के बीच द्वंद को एक नईं परिभाषा दी. हॉलीवुड में बनी इन सुपरहीरोज फिल्मों ने पूरी दुनिया में सफलता की धूम मचा रखी थी जिनसे भारतीय दर्शक भी अछूते नही रहे. इनके रोमांच में इस कदर डूबे की बॉलीवुड कलाकारों को सुपरहीरो के लिबास में देखने के ख्वाब बुनने लगे. छोटे पर्दे पर मुकेश खन्ना ने ‘शक्तिमान’ बन दर्शको को सुपरहीरो की सौगात दी, लेकिन बड़े पर्दे को अब भी एक लम्बा इंतज़ार तय करना था.
आखिरकार
2006 में इंतज़ार खत्म हुआ, निर्देशक राकेश रोशन ने 2003 में अपनी
निर्देशित-निर्मित साइंस-फिक्शन फिल्म ‘कोई मिल गया’ के सिक्वल को सुपरहीरो फिल्म
‘क्रिश’ में तब्दील किया और इस तरह बॉलीवुड को उनका पहला सुपरहीरो मिला. कमजोर
कहानी के चलते भी फिल्म बच्चो-बुड्ढो में खासा लोकप्रिय हुईं. फिल्म का असली नायक
अगर कोई था तो वो ऋतिक रोशन नहीं बल्कि उनके पिता-निर्देशक-निर्माता रोकेश रोशन
थे, जिनकी कड़ी मेहनत के बदौलत बड़े पर्दे के पहले सुपरहीरो की निर्माण हुआ.
Sunday 10 August 2014
कहानी जारी है....
आज़ वो कबड्डी वाला पाठ पढ़ा रही थी. सुमन ने सभी बच्चो को
ग्राउंड में चलने को कहा. “चलो बच्चो आज हम ग्राउंड में ही इस पाठ के बारे
में समझेगें” उसने बच्चो की दो टीम बनाई और कबड्डी का खेल
शुरू हो गया पर रितु इस सबसे अलग दूर बैंच पर जाकर बैठ गई. सुमन उसके पास आकर
बोली, “तुम्हे कबड्डी खेलनी नहीं आती....?” इस बार रितु ने निगाहें उठाकर सुमन को एक नजर देखा और फिर
निगाहें नीचे कर घास में कुछ ढूंढने लगी.”'क्या मैं तुम्हारी चोटी ठीक से बना दूँ....?” रितु ने फिर निगाहें ऊपर की इस बार उसकी नजरों में सवाल
था.... क्यों? उसका दिल किसी तहखाने जैसा था, जो परत- दर- परत ऊपर से सख्त पर इन
परतो के अंत में एक कीमती खजाना था. वो खजाना ही तो सुमन को ढूंढना था. वह एक के
बाद सारे दरवाजे खोलकर अंदर चली जाना चाहती थी. सुमन बिना उसके जवाब के इंतज़ार किए
उसकी चोटी बनाने लगी. रितु ने गुस्से से सुमन के हाथ से कंघा छीनकर फेंक दिया और
तेजी से दौड़ते हुए अपनी क्लास में आकर बैठ गई. उसने अपना चेहरा अपनी बाजुओं में
छुपा रखा था. सुमन ने प्यार और ममता से भरा हाथ उसके सर पर फिराया. “मेरे उस दिन के व्यहवार के लिए मुझे माफ़ कर दो
बेटा” सुमन के स्वर में प्यार, पछतावा और न जाने
कितने भावों का मिश्रण था.
Saturday 2 August 2014
शालिनी श्रीवास्तव
केस न. 212 कचहरी
में कोर्ट के अंदर से आवाज आई. चंद पलों में मानों एक लम्बी दूरी तय करनी हो, मानो
इतने भारी हो गये की उठाये न उठ रहे हैं और तभी उसकी आँखों में अपनी नन्ही सी बेटी
का सहमा, डरा और दर्द से कराहता हुआ चेहरा सामने आया. उसके शरीर में जैसे एक
झनझनाहट दौड़ी हो, भारी ही सही पर उसे अपने इन कदमों से अंदर जाना ही होगा. वह
जिससे अलग होने का शौक मना रही हैं उसके साथ रहकर भी कौन- सा सुख से जी पा रही
हैं....!
“सुमन अंदर चलो तुम्हारे केस का न. आ चुका हैं,
दो बजने वाले हैं अगर लंच हो गया तो फिर देर शाम तक का इंतज़ार करना पड़ेगा.” मनोहर
ने लगभग उसको किसी नींद से जगाया हो, किसी गहरे चिंतन से.... लेकिन चिंतन....? आज
और अब इस वक़्त क्यों....? उसने तो छ: महीने से इस दिन का गिनगिनकर इंतज़ार किया था
फिर आज उसका मन डबडबा क्यों रहा हैं..? मन और कदम भारी क्यों हो गये हैं...? “आप
दोनों की छ: महिने की मौहलत खत्म हो चुकी हैं अब बताये क्या फैसला हैं आप दोनों
का..?” जज ने बड़े लापरवाह और रुखे तरीके से पूछा. “सर मिसेज सुमन डाइवोर्स चाहती
हैं आप मि. शेखर से पूछ ले” मनोहर, सुमन के वकील ने जज के सामने प्रस्ताव रखा.
“मि. शेखर भी डाइवोर्स के लिए तैयार हैं जज साहब” शेखर के वकील ने भी दोनों के
रास्ते अलग करने पर मोहर लगा दी. कागज़ के एक टुकड़े पर दोनों के साइन और चार सालो
का रिश्ता, साथ, कसमें सब कुछ खत्म. वह घर जिसे उसने अपने माँ-बाप की मर्जी के
खिलाफ जाकर बसाया था; आज उस घर से भी उसका डेरा उठ गया, न जाने कहाँ से और कैसे
उसके घोसले की गांठे ढीली हुई और तिनका-तिनका करके उसका आशियाना बिखर गया.
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